पांडुलिपियों के संरक्षण पर ध्यान दे संस्कृति मंत्रालय: अनंत विजय

राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन का आरंभ अटल बिहारी वाजपेयी जी के प्रधानमंत्रित्व काल में 2003 में किया गया। मिशन के गठन के करीब सालभर बाद अटल जी की सरकार चली गई।

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Published - Monday, 13 January, 2025
Last Modified:
Monday, 13 January, 2025
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अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने पांच भारतीय भाषाओं को क्लासिकल भाषा की श्रेणी में लाने का निर्णय लिया था। ये पांच भाषाएं हैं मराठी, बंगाली, पालि, प्राकृत और असमिया। इन भाषाओं में हमारे देश में प्रचुर मात्रा में ज्ञान संपदा उपलब्ध है। पालि और प्राकृत में तो हमारे इतिहास की अनेक अलक्षित अध्याय भी हैं जिनका सामने आना शेष है।

हमारे देश की ऐतिहासिक ज्ञान संपदा कई मठों और बौद्ध विहारों के अलावा जैन मतावलंबियों के मंदिरों में रखी हैं। इनमें से अधिकतर पांडुलिपियां पालि और प्राकृत में हैं। प्रधानमंत्री मोदी इन भाषाओं को क्लासिकल भाषा की घोषणा से आगे जाकर पांडुलिपियों में दर्ज ज्ञान संपदा को आम जनता तक पहुंचाना चाहते हैं। बुद्ध के बारे में तो प्रधानमंत्री राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मंचों पर निरंतर बोलते रहते हैं।

हाल ही में प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर आयोजित समारोह में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुद्ध और उनके सिद्धातों के बारे में चर्चा की थी। भगवान बुद्ध ने जो ज्ञान दिया है उसको वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का कार्य होना शेष है। प्रधानमंत्री के निर्णय के बाद पालि को लेकर थिंक टैंक श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन ने सक्रियता दिखाई और देश के कई हिस्से में गोष्ठियां आदि करके उसको मुख्यधारा में लाने की पहल आरंभ की है।

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